भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बेकाबू क्यों हो गई? ग़लती कहां हुई? बीते हफ़्ते भारत ने एक दिन में नए कोविड केस का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। कोरोना संक्रमण से अब तक जान गंवाने वालों की आधिकारिक संख्या दो लाख के पार जा चुकी थी। सोशल मीडिया पर नज़र डालें तो मदद की गुहार लगाते संदेशों की भरमार दिखती है।
देश के तमाम अस्पतालों का बुरा हाल है। ज़रूरी सामान की कमी होती जा रही है। कतारें श्मशानों और कब्रिस्तानों के बाहर भी दिखती हैं।

यहां भी जगह कम पड़ने लगी है। भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि उन्होंने कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर भारत सरकार को आगाह किया था, लेकिन सरकार ने उनकी इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया था।
सरकार द्वारा स्थापित वैज्ञानिक सलाहकारों के एक मंच ने भारतीय अधिकारियों को मार्च में ही चेतावनी दी थी। उस वक्त देश में कोविड-19 का नया वेरियंट मिल चुका था। खैर ज़्यादातर हालात राम भरोसे ही नज़र आये थे, अब ऐसे में भारत सरकार के 7 साल पूरे हो गए हैं।

पिछली बार 2014 में और इस बार 2019 में और ज़बरदस्त तरीके से बीजेपी की केंद्र में सरकार बनी। और इसी बीच कई तरह की चुनोतियों से मोदी सरकार लगातार लड़ रही है। हालांकि इस बार कोरोना को ध्यान में रखते हुए बीजेपी केंद्र सरकार के 7 साल पूरे होने पर किसी भी तरह का कोई जश्न नहीं मना रही है।
बल्कि असहाय बच्चों और ज़रूरतमंद लोगों की मदद के लिए कुछ काम करने की बात कर रही है। लेकिन किसी भी केंद्र की सरकार के लिए और भारत के पीएम के लिए ये 7 साल बहुत ही अहम और मायने रखने वाले रहे हैं।

अब हम आपको पूर्व की सरकारों के बारे में भी थोड़ी जानकारी देने जा रहे हैं कि किस तरह से पहले और अब की सरकार के लिए ये 7 साल का कार्यकाल रहा। बतादें ये 7वाँ साल मोदी सरकार के लिए बिल्कुल भी बेहतर नहीं रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भारत के तीन और पूर्व पीएम अपने कार्यकाल के सातवें साल में लड़खड़ाते हुए नज़र आए थे। इनमें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और डॉ मनमोहन सिंह का नाम शामिल है।

आइए जानते हैं कि, आख़िर इन सभी पूर्व पीएम के कार्यकाल का सातवां साल किस तरह से उनके लिए बहुत बुरा साबित हुआ था। बतादें देश का पहला प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य जवाहरलाल नेहरू को मिला था। पड़ोसी मुल्क चीन के कारण नेहरू को फजीहत झेलनी पड़ी थी।
नेहरू के सातवें कार्यकाल में दलाई तामा ने तिब्बत से जान बचाकर भारत का रुख किया था। जबकि इसी साल भारत और चीन के बीच झड़प भी होने लगी थी।
संसद में नेहरू सवालों के घेरे में आ गए। चीन अपने पैंतरे आजमाता रहा और लगातार पंडित नेहरू की आलोचना होती रही।

नतीजा यह रहा कि, भारत को साल 1962 में चीन के हाथों युद्ध में बुरी हार मिली। उधर इंदिरा गांधी ने पीएम का पद संभालते ही इतिहास रच दिया था। उनके नाम भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री होने का कीर्तिमान है।

अपने कार्यकाल में इंदिरा गांधी खूब सुर्ख़ियों में रही। उन्होंने अनेकों ऐसे काम किए जिसके चलते उन्हें अब भी याद किया जाता है। लेकिन कार्यकाल का सातवां साल बहुत बुरा साबित हुआ। इंदिरा ने 25 जून 1975 को देश में आंतरिक आपात काल की घोषणा कर दी। जिसके चलते उनकी ख़ूब आलोचना हुई।
डॉ मनमोहन सिंह साल 2011 में कार्यकाल के सातवें साल में थे। इस दौरान अन्ना हजारे का आंदोलन उनके लिए मुसीबत बनकर सामने आया। इस आंदोलन ने देशभर में ख़ूब हाहाकार मचाया।

अन्ना के आंदोलन ने इस सरकार को हिलाकर रख दिया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के सातवें साल में हैं। साल 2014 में पीएम मोदी ने पहली बार पीएम के रूप में शपथ ली थी। देश-दुनिया देख ही रही है कि, इस समय मोदी जी और पूरी सरकार बुरे दौर से गुजर रही है।

कोरोना की दूसरी लहर को लेकर मोदी सरकार हर किसी के निशाने पर बनी हुई है। देश के साथ ही विदेशी मीडिया में भी पीएम मोदी के ख़िलाफ़ काफी कुछ लिखा गया है।
वैसे कई बार इतिहास अपने आप को बदलता भी है, और कई बार इतिहास अपने आप को दोहराता भी है। खैर अब देखना ये होगा कि इस बार अपने 7वें साल में मोदी सरकार इतिहास बनाती है, इतिहास बदलती है या फिर ख़ुद ही इतिहास बन जाती है।