देश के सामने एक बार फिर से वही कहने का मौका है कि ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’ और ये सच भी है, क्योंकि बेटियों ने हर बार साबित किया है। बतादें, इस बार न्यू मैक्सिको से 34 वर्षीय एरोनॉटिकल इंजीनियर शिरिशा बांदला वर्जिन गैलेक्टिक के अंतरिक्ष यान टू यूनिटी में ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन और चार अन्य लोगों के साथ अंतरिक्ष के छोर पर पहुंचीं।
शिरिशा के दादा बांदला रागैया ने कहा, ‘बचपन में उसकी नजर हमेशा आसमान में रहती थी और वह तारों, हवाईजहाज और अंतरिक्ष की तरफ बेहद उत्सुकता से देखती रहती थी। उसका जुनून ऐसा था कि अंतत: वह अंतरिक्ष में गई और यह उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार जब शिरिषा छोटी थीं तो रागैया हैदराबाद में उसकी देखभाल करते थे क्योंकि उसके माता-पिता अमेरिका में बस गए थे। कुछ समय के लिए वह आंध्र प्रदेश के चिराला में अपने नाना-नानी के घर उनके साथ भी रही थी। रागैया ने अपनी पोती की इस उपलब्धि पर गर्व जताते हुए कहा, हम बहुत खुश हैं कि उसका सपना और काफी समय की इच्छा पूरी हुई।
यह एक महान उपलब्धि है और हमें उस पर गर्व है।अंतरिक्ष में जाने वाली तेलुगू मूल की पहली महिला शिरिषा जब चार साल की थीं तब अपनी बड़ी बहन प्रत्यूषा के साथ माता-पिता के साथ रहने अमेरिका चली गई थीं। शिरिषा के पिता मुरलीधर अपने पिता की तरह एक कृषि वैज्ञानिक हैं और अब वह नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में पदस्थ हैं।

उन्होंने अपनी बेटी की इस सफलता को लेकर टिप्पणी की, हम बहुत खुश हैं कि अंतरिक्ष के लिए वर्जिन गैलेक्टिक की उड़ान सफल रही। मैं इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं। इस बीच, आंध्र प्रदेश के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन और मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने बांदला को उनकी उपलब्धि पर बधाई दी है।
राज्यपाल ने एक संदेश में कहा, यह पहली तेलुगू लड़की शिरिषा द्वारा एक एतिहासिक सफर था और वह अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद। मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा कि यह राज्य के लिए गर्व की बात है कि गुंटूर में पैदा हुई शिरिषा ने अंतरिक्ष की उड़ान भरी।

वहीं, बांदला ने अपने इस अनुभव को ‘अतुल्य’ और ‘जिंदगी बदलने वाला’ करार दिया है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, कि मैं अब भी खुद को वहीं महसूस कर रही हैं लेकिन यहां आना काफी अच्छा है। मैं एक बेहतर दुनिया के बारे में सोच रही थी और तब मेरे दिमाग में एक ही शब्द आ सकता था…अतुलनीय।
वहां से धरती का नजारा देखना जिंदगी बदलने वाला पल होता है…। अंतरिक्ष में जाना और वहां से लौटने तक की पूरी यात्रा शानदार थी। बांदला ने इस पल को बेहद भावनात्मक करार देते हुए कहा, मैं जब छोटी थी तब से अंतरिक्ष में जाने के सपने देख रही थी और वास्तव में यह सपने के सच होने जैसा है।

खैर चलते-चलते ज़िंदगी में बहुत कुछ उपलब्धि हासिल करने की कोशिश यही बताती है कि कुछ काम ऐसे होते हैं जो देश को दिलों को जोड़ते हैं, वही काम किया है देश की इस बेटी ने। अब आपकी, हमारी बारी है देश के लिए कुछ कर गुज़रने की, कमेंट कीजिए, आपने क्या सोचा है?