संजय दत्त (Sanjay Dutt) 63 साल के हो गए हैं। 29 जुलाई 1959 को मुंबई में जन्मे संजय दत्त की जिंदगी बचपन से ही किसी रोलर-कोस्टर से कम नहीं रही है। एक वक्त था, जब संजू को उनके पिता और दिग्गज अभिनेता-पॉलिटिशियन सुनील दत्त (Sunil Dutt) ने हिमाचल प्रदेश के सनावर स्थित लॉरेंस स्कूल भेज दिया था, जो कि बोर्डिंग स्कूल है।
संजू की मानें तो यहां उन्हें तरह-तरह की यातनाएं सहनी पड़ी थीं। खास बात यह है कि उन्हें सुनील दत्त और नर्गिस का बेटा होने की वजह से परेशान किया जाता था। इतना ही नहीं यहां टीचर्आस भी उन्हें ऐसी सजाएं देते थे, जिनके बारे में सोचकर ही रूह काँप जाए।

बकौल संजय दत्त, “शुरुआत के दो साल नरक की तरह थे। रोज़ 30 जोड़े सफ़ेद जूतों पर पॉलिश करना पड़ता था। यह सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं सुनील दत्त का बेटा था। मुझे हर दिन सीनियर्स के 15-20 बिस्तर लगाने पड़ते थे।”

संजय दत्त ने डरते-डरते अपनी मां नर्गिस को एक ऐसे लड़के के बारे में बताया था, जो उन्हें उनकी मां के एक्ट्रेस होने और पिता के अभिनेता होने की वजह से चिढ़ाता था। संजय की मानें तो वे डर गए थे कि कहीं वह बदमाश और अन्य लोग उसे पीट भी सकते हैं।
स्कूल में कुछ ऐसे बच्चे थे जो संजय दत्त को उनकी मां, पिता और बहनों के साथ हिंसक होने की धमकी देते थे। नर्गिस ने उस समय का जिक्र करते हुए एक जगह लिखा है, “संजय बहुत घबराया हुआ था।

वह मेरे साथ मुंबई वापस आना चाहता था। वे (बदमाश) कहते थे कि अगर मेरे बराबर तुम्हारी कोई बहन है तो तुम उसे यहां क्यों नहीं लाते हो। हम उसके साथ कुछ करना पसंद करेंगे। इसके बाद वे उससे लड़ते भी थे।”
नर्गिस के मुताबिक़, संजय उनसे बार-बार कहते रहे कि मां मुझे वापस ले चलो। मुझे यह स्कूल पसंद नहीं है। मुझे फिर से कैथेड्रल (मुंबई का वह स्कूल, जहां संजय दत्त बोर्डिंग स्कूल जाने से पहले पढ़ते थे।) में डाल दो।

मुझे पांचवीं कक्षा दोबारा करने में कोई दिक्कत नहीं है।” हालांकि, नर्गिस और सुनील दत्त ने उनकी मांगों को नज़रअंदाज़ कर दिया, क्योंकि वे चाहते थे कि संजू अपने दम पर अपनी लड़ाई लड़ना सीखें।
हालांकि, संजय दत्त को सुनील दत्त का फैसला पसंद नहीं आया। उन्होंने बाद में कहा था, “मैं इसके लिए उनसे नफरत करता था। अपने होने पर खेद करने लगा। मुझे लगने लगा था कि मैं उनका अपना खून नहीं हूं।”

इस बीच राज कपूर की फिल्म ‘बॉबी’ रिलीज हुई, जिससे डिम्पल कापड़िया ने फिल्मों में कदम रखा था। अफवाह उड़ी कि डिम्पल नर्गिस और राज कपूर के प्यार की निशानी है।
इसे लेकर भी बोर्डिंग स्कूल के बच्चों ने संजय दत्त को खूब परेशान किया। बाद में नर्गिस ने एक इंटरव्यू में इस अफवाह पर सफाई भी दी।

सनावर के स्कूल में संजय दत्त को कई साल बीत गए और जब वे बड़े हुए तो एकदम बिगड़ गए थे। वे भी उन्हीं बदमाशों की तरह बन गए, जो उन्हें परेशान करते थे। उन्होंने शराब-सिगरेट पीना शुरू कर दिया था।
लड़कियों का पीछा करना, उन्हें लव लेटर लिखा संजय दत्त की आदत में आ गया था। एक बार स्कूल के डिप्टी हेडमास्टर एम. बी. सिंह ने संजय दत्त को रात में लड़की के साथ गेम खेलते पकड़ लिया था।

जब उन्होंने संजय से पूछा कि वे लड़की के साथ क्या कर रहे थे तो उन्होंने जवाब दिया कुछ भी नहीं। इस पर डिप्टी हेडमास्टर ने उन्हें फटकार लगाई और सुबह मिलने के लिए कहा।
अगले दिन डिप्टी हेडमास्टर ने संजय दत्त से अपने कंधे पर एक राइफल रखकर घुटनों के बल कीड़े की तरह चलने को कहा। संजू के मुताबिक़, ऐसा उन्हें 15 दिन तक करना पड़ा।

संजय दत्त उस वक्त 16 साल के थे और उन्हें अपनी पीठ पर राइफल रखकर डामर और पत्थर वाली सड़क पर घुटनों के बल चलना पड़ता था। उनके शरीर से खून तक बहने लगा था।

सुकेतु मेहता के मुताबिक़, एक बार संजय दत्त की इतनी बुरी तरह पिटाई की गई थी कि उनके घाव पकने लगे थे। बाद में सुनील दत्त ने उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया था।
बताया जाता है कि संजय दत्त हर सिचुएशन में अपने दोस्तों और क्लासमेट्स के साथ खड़े रहते थे और यही वजह है कि उन्हें अक्सर दूसरों के गुनाहों की सजा मिल जाती थी।

10 साल की उम्र में बोर्डिंग स्कूल गए संजय दत्त जब घर लौटे, तब 18 साल के थे। यह वही 1977 का साल था, जब इमरजेंसी के चलते इंदिरा गांधी की लोकसभा चुनाव में हार हुई थी। उस वक्त संजय दत्त के पिता सुनील दत्त चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे थे।