हर राज्य हर लोक हर समाज हर जाति हर धर्म की अपनी ही अलग ही परंपरा होती है। इस परंपरा को ज़िंदा रखना ही लोगों के लिए बेहद ज़रूरी होता है, क्योंकि अक्सर पुराने लोग ही पुरानी बातों को याद कर आगे बढ़ते हैं, क्योंकि वो लोग हमेशा ही अपने पुराने दिनों को याद करना चाहते हैं और साकार भी।
फलीभूत होने पर उनके जीवन की वो बड़ी उपलब्धि भी हो जाती है, और आज हम उसी के बारे में बताने जा रहे हैं। बतादें, कश्मीर के अब्दुल समद गनी सालों पुरानी पुल्हूर बनाने की कश्मीरी परंपरा को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं। पुरानी परंपरा के जूते लोग प्राचीन काल में पहनते थे।

अब्दुल समद इन चप्पलों को अपने इस्तेमाल के लिए बना रहे हैं। वे भी चाहते हैं कि ये पुरानी कला जीवित रहे। अब्दुल समद गनी ने कहा, मेरा उद्देश्य इस कला को जीवित रखना है ताकि हमारी युवा पीढ़ी पुराने कश्मीर के जान सके।
जानकारी के मुताबिक, कश्मीर के बांदीपोरा जिले के केहनुसा गांव का एक 110 साल का व्यक्ति धान के भूसे से चप्पल-जूते बनाने की कश्मीरी परंपरा को जीवित रखने की कोशिश कर रहा है।

अब्दुल समद गनी जूते बनाते हैं जिन्हें कश्मीर में पुल्हूर कहा जाता है। जब कोई भी चमड़े और अन्य जूते नहीं पहनता था तो इन्हीं जूतों का इस्तेमाल होता था। उन्होंने कहा, इस तरह के जूते पर्यावरण के अनुकूल और स्किन के लिए सही हैं।
पुराने वक्त में हर घर न केवल इनका उपयोग कर रहा था बल्कि कश्मीर में इन हल्के जूतों को खुद भी बना रहा था। और आज उसी परंपरा को ज़िंदा करने का प्रयास एक बुज़ुर्ग की तरफ से किया जा रहा है, ये बात अपने आप में भी बहुत ही दिलचस्प है, क्योंकि इस उम्र में लोग अपने बारे में ही सोचते हैं अपनी ही बात करते हैं

ज़िंदगी को आराम के साथ जीने की कोशिश करते हैं, लेकिन ये बुज़ुर्ग हैं कि अपने आखिरी वक्त में भी शुरुआती दिनों की तरह ही जोशीले काम कर रहे हैं, सलाम इन्हें हमारा सलाम, और आपका, कमेंट कीजिए।