
ब्रिटिशकालीन भारत में 1898 में जन्में मोहन सिंह ओबेरॉय अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत और उनका होटल साम्राज्य आज भारत के साथ ही श्रीलंका, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया और हंगरी जैसे देशों में फैला हुआ है। झेलम जिले के भाऊन में एक सामान्य से परिवार में जन्में मोहन सिंह जब केवल छह माह के थे तभी उनके सर से पिता का साया उठ गया था।
ऐसी हालत में घर चलाने और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गई। एक महिला पर सारो जिम्मेदारी आना कोई आसान बात नहीं थी। उस समय मोहन ने सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया। कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में जुट गए लेकिन नौकरी नहीं मिली।

नौकरी को लेकर मोहन को काफी संघर्ष करना पड़ा। इसी बीच गाँव के लोगों के दबाव के चलते उनका विवाह भी हो गया। उनका विवाह कलकत्ता के एक परिवार में हुआ था। विवाह के बाद मोहन सिंह ओबरॉय का ज्यादातर समय ससुराल में ही बीतने लगा था। ऐसे में जब वह एक बार अपने घर आए तो पता लगा कि पूरे गाँव में प्लेग फैल चुका है। जिससे गाँव के कई लोग जान गंवा चुके हैं।
हालातों को देखते हुए ओबेराय की माँ ने उन्हें वापिस ससुराल लौट जाने की सलाह दी। माँ ने कहा कि वह फिलहाल ससुराल में रहकर ही कुछ काम-धंधा करें लेकिन किस्मत इतनी खराब थी कि बिना नौकरी के ही उन्हें मजबूरन ससुराल में रहना पड़ा। ओबेरॉय उन दिनों को याद करते हुए आगे बताते हैं कि ससुराल में एक दिन उन्होंने देखा कि अख़बार में एक सरकारी नौकरी का विज्ञापन छपा हुआ है। विज्ञापन क्लर्क के एक पद के लिए था जिसकी मोहन सिंह ओबरॉय योग्यता रखते थे।

इस विज्ञापन को देखने बाद मोहन सिंह ओबरॉय बिना कुछ सोचे समझे सीधा शिमला निकल गए। शिमला में वह एक होटल को देखकर वह काफी प्रभावित हुए और उस होटल के मैनेजर से नौकरी के बारे में पूछा। मैनेजर ने उनसे प्रभावित होकर 40 रुपये की मासिक सैलरी पर रख लिया। मोहन सिंह ओबेराय सिसिल होटल में मैनेजर, क्लर्क, स्टोर कीपर सभी कार्यभार खुद ही संभाल लेते थे और अपने प्रयत्नों और कड़ी मेहनत से उन्होंने ब्रिटिश हुक्मरानों का दिल जीत लिया था।

ब्रिटिश मैनेजर इरनेस्ट क्लार्क छह महीने की छुट्टी पर लंदन गए तो वह सिसिल होटल का कार्यभार मोहन सिंह ओबराय को सौंप गए। मोहन सिंह ने इस दौरान होटल के औकुपैंसी को दोगुना कर दिया। धीरे-धीरे उनकी सैलरी बढ़कर 50 रुपये हो गई और रहने के लिए एक क्वॉर्टर भी मिल गया।
वह अपनी पत्नी के साथ वहां रहने लगे। समय ऐसे ही गुजरता रहा और एक दिन होटल के मैनेजर क्लार्क ने मोहन सिंह ओबरॉय के सामने नई पेशकश रखी। वह चाहते थे कि सिसिल होटल को 25,000 रुपए में मोहन सिंह ओबरॉय खरीद लें। मोहन सिंह ओबरॉय ने इसके लिए उनसे कुछ समय मांगते हुए होटल खरीदने की हामी भर दी।धीरे-धीरे मोहन सिंह देश के सबसे बड़े होटल उद्योगपति बन गए। ओबेरॉय होटल ग्रुप सबसे बड़ा होटल ग्रुप माना जाता है और इस ग्रुप का टर्नओवर 1,500 करोड़ के करीब है।