मधुमक्खी अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोती। ये इतनी मेहनती होती है कि पूछो मत, एक बूंद शहद के लिए दूर-दूर तक उड़ती हैं। अब मधुमक्खीयां तेजी से खत्म हो रही हैं,कभी बरामदे, तो कभी पेड़ों में लगे छत्ते की भिनभिनाहट किसी को भी परेशान कर सकती है। काली-पीली मधुमक्खी ने कहीं काट लिया तो दर्द कौन झेलेगा? लेकिन इनके छत्ते मिटाने से कहीं इंसान पूरी धरती को तो खतरे में नहीं डाल रहा?

एक स्टडी में दावा किया गया है कि 1990 के बाद से मधुमक्खियों की एक चौथाई आबादी पब्लिक रेकॉर्ड में देखी ही नहीं गई हैं। आपको बता दे कि मधुमक्खी धरती पर अकेली ऐसी कीट है जिसके द्वारा बनाया गया भोजन मनुष्य द्वारा खाया जाता है। दरअसल, इस नन्हे जीव ने उठा रखा है धरती पर जीवन के विकास का बीड़ा और अगर ये न हो तो न सिर्फ जंगल बल्कि दुनियाभर का पेट भरने वाली फसलें भी खतरे में पड़ सकती हैं।

आपको बता दें कि मधुमक्खियों तथा फूल-पौधों के मध्य का सम्बंध पृथ्वी पर सर्वाधिक व्यापक, सामंजस्यपूर्ण व परस्पर निर्भरता का है। करीब 10 करोड़ वर्षों पूर्व मधुमक्खियों तथा फूलों के मध्य के सामंजस्य द्वारा यह पृथ्वी समृद्ध बनी थी। अतः इस ग्रह पर संपूर्ण मानव जाति के उत्थान हेतु भी मधुमक्खियाँ ही कारण है। मधुमक्खियों की विविधता और मौजूदगी पर कई इंसानी गतिविधियों का असर पड़ता है।

इसमें गहन कृषि और निवासस्थान की तबाही जैसे कारण शामिल हैं लेकिन इसकी पुष्टि करने के लिए डेटा नहीं है। वहीं रॉयल ज्योग्राफिक सोसाइटी ऑफ लंदन की एक मीटिंग की गई थी, जिसमें अर्थवॉच इंस्टीट्यूट ने कहा कि मधुमक्खी हमारी पृथ्वी पर सबसे अमूल्य प्राणी होती हैं।