हमारे देश भारत में अधंविश्वास से जुड़ी बातों को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है आज के समय में भी लोग अंधविश्वासों को मानने में पीछे नहीं हैं। लोग अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए अंधविश्वास से जुड़ी वो हर चीजों को मानते है जिसमें वो अपना फायदे देखते है।
उन्हें शुभ अशुभ मानते हुए उन सभी नियमों का पालन करते हैं जो काफी समय से चले आ रहें हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इनके पीछे कुछ वैज्ञानिक तर्क छुपे हुए हैं। जी हां भारत में हर परंपरा के पीछे वैज्ञानिक राज छिपे हुए है।
आज भी हमारे देश के कई जगहों पर टोने टोटके देखते रहते है और लोग उस पर विश्वास भी करते है और विश्वास के कारण न जाने क्या कर बैठते है। ये प्रचलन शुरू से चलता आ रहा है। टोने टोटके के नाम पर ठगी की जाती है। भारत में दी जाने वाली पशु बलि की भी परंपरा भी शुरू से है। देवताओं को खुश करने के लिए जानवरो की बलि दी जाती है।
बलि प्रथा के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि दिए जाने का प्रचलन है। हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। उन्हें बलि चढ़ाने के लिए कई तरह के तर्क दिये जाते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या बलि प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा है?
यदि वेद और पुराणों की मानें तो नहीं और यदि अन्य धर्मशास्त्रों की मानें तो हां। हालांकि वेद, उपनिषद और गीता ही एकमात्र धर्मशास्त्र है। पुराण या अन्य शास्त्र नहीं। बलि प्रथा का प्राचलन हिंदुओं के शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदाय में ही देखने को मिलता है
लेकिन इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है। शाक्त या तांत्रिक संप्रदाय अपनी शुरुआत से ऐसे नहीं थे लेकिन लोगों ने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कई तरह के विश्वास को उक्त संप्रदाय में जोड़ दिया गया।