बीते कुछ दिनों से सरकार अवैध कॉलोनी हो या मकान सब पर अपना शिकंजा कसती जा रही है। अभी हाल ही में सरकार ने नोएडा के ट्विन टावर को गिराया है जो कि अवैध रूप से बनाया जा रहा था। इससे पहले सरकार ने अरावली की भी अवैध कॉलोनियों को तोड़ा हैं।
अब सरकार ने दिल्ली में भी कई अवैध कॉलोनियों को तोड़ा है।इसके साथ ही गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने पूरे जिले में 321 कॉलोनियों को अवैध घोषित कर दिया है,जिसमें आम जनता फंसी हुई है। हालांकि बिल्डरों को भी क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। लेकिन उन्होंने अपने अवैध काम को वैध बनाने के तरीके खोज लिए हैं।
उत्तर प्रदेश के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता गाजियाबाद को एक रियल एस्टेट हब के रूप में भी जाना जाता है। वैशाली, वंसुधारा, इंदिरापुरम, राजनगर एक्सटेंशन, क्रॉसिंग रिपब्लिक और सिद्धार्थ विहार कॉलोनी में मौजूद गगनचुंबी इमारतें शहर को एक पहचान देती हैं। लेकिन सच है कि यहां अवैध रूप से बसी कॉलोनियों का चक्रव्यूह है,जिसमें आम जनता फंसी हुई है।
प्राधिकरण ने अवैध कॉलोनी की पहचान करने के लिए पूरे जिले को 8 जोन में बांटा है। जिसमें जोन-8 में सर्वाधिक 124 अवैध कॉलोनी जबकि जोन-6 में सबसे कम 1 अवैध कॉलोनी है। जोन-1 में 30, जोन-2 में 74, जोन-3 में 39, जोन-4 में 30, जोन-5 में 16 और जोन-7 में 7 अवैध कॉलोनियां हैं। जोन-8 में लोनी क्षेत्र शामिल है।
ऐसे में आम लोग फस जाते हैं और बिल्डर बच निकलते हैं।शहर में बिल्डरों द्वारा बनाई जाने वाली आवासीय परियोजनाएं वैध होनी चाहिए। लेकिन इनके निर्माण के दौरान कई बार बिल्डर द्वारा छेड़छाड़ की जाती है। आरडब्ल्यूए फेडरेशन के अध्यक्ष कर्नल टीपी त्यागी का कहना है कि बिल्डर तय एफएआर से ज्यादा निर्माण करते हैं और बाद में उसे कंपाउंड कर कार्रवाई से दूर हो जाते हैं।