भारतीय सिनेमा की पहली महिला कॉमेडियन उमा देवी खत्री (Uma Devi Khatri) उर्फ़ टुनटुन (Tun Tun) की आज 99वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 11 जुलाई 1923 को उमा देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में हुआ था। पर्दे पर हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देने वाली टुनटुन की जिंदगी की कहानी काफी दर्द भरी है।
वे फिल्मों में आईं, सिंगर बनीं और फिर कॉमेडी करने लगीं। लेकिन यह उनकी ज़िंदगी की ट्रेजेडी थी, जो उन्हें अपने गृह ग्राम से मुंबई ले आई थी।
दरअसल, उस वक्त उमा देवी खत्री महज ढाई साल की थीं, जब ज़मीन विवाद में उनके पैरेंट्स की हत्या कर दी गई थी। उनका एक बड़ा भाई था, जो 9 साल का था और जिसका नाम हरि था।
लेकिन एक दिन उसकी भी हत्या कर दी गई और टुनटुन की जिंदगी बद से बदतर हो गई। उन्हें पेट भरने के लिए अपने ही रिश्तेदारों के घरों में नौकरानी का काम करना पड़ा।
अपने निधन से महज दो दिन पहले टुनटुन ने एक बातचीत में कहा था, “मुझे याद नहीं कि मेरे माता-पिता कौन थे और वे कैसे दिखते थे। मैं बमुश्किल दो या ढाई साल की थी।
जब उनका निधन हो गया। मेरा 8-9 साल का भाई था, जिसका नाम हरि था। मुझे याद है कि हम अलीपुर नाम के गांव में रहते थे।
एक दिन मेरे भाई की हत्या कर दी गई और मुझे दो वक्त के खाने के लिए अपने ही रिश्तेदारों के घर में नौकरानी का काम करना पड़ा।”
बताया जाता है कि टुनटुन का बचपन गरीबी में बीता। बाद में उनकी मुलाक़ात एक्साइज ड्यूटी इंस्पेक्टर अख्तर अब्बास काजी से हुई, जिन्होंने उनकी मदद की।
विभाजन की वजह से काजी साहब लाहौर, पाकिस्तान चले गए और यहां गाने की शौक़ीन उमा देवी एक दिन मौका पाकर रिश्तेदारों चकमा देकर मुंबई आ गईं। उस वक्त उमा देवी की उम्र लगभग 23 साल थी।
उमा देवी मुंबई पहुंचकर संगीतकार नौशाद के दरवाजे पर पहुंच गईं और गाने का मौका देने की गुहार लगाने लगीं। नौसाद ने उमा देवी का ऑडिशन लिया और उन्हें तुरंत हायर कर लिया।
बताया जाता है कि नौशाद ने उमा देवी को 500 रुपए महीने की नौकरी पर रखा था। 1946 में उमा देवी ने फिल्म ‘वामिक आजरा’ से बतौर सिंगर डेब्यू किया। लेकिन उन्हें पहचान 1947 में आए सॉन्ग ‘अफ़साना लिख रही हूं दिल-ए- बेकरार का’ से मिली, जो फिल्म ‘दर्द’ से था।
इसी फिल्म में उन्होंने तीन अन्य गानों को ‘आज मची है धूम’, ‘ये कौन चला’ और ‘बेताब है दिल दर्द-ए-मोहब्बत से’ भी आवाज़ दी थी।
उमा देवी का सिंगिंग करियर चल निकला। उन्होंने एक के बाद एक कई हिट सॉन्ग्स दिए। लेकिन कुछ साल बाद अपनी पुरानी स्टाइल और लिमिटेड वोकल रेंज के चलते उन्हें गाने में दिक्कत होने लगी।
तब नौशाद ने उन्हें एक्टिंग की सलाह दी। क्योंकि उनकी कॉमिक टाइमिंग गजब की थी। उमा देवी दिलीप कुमार से काफी प्रभावित थीं और वे चाहती थीं कि वे दिलीप साहब के साथ ही पहली फिल्म में एक्टिंग करें।
1950 में दिलीप कुमार और नरगिस स्टारर ‘बाबुल’ में उमा देवी ने काम किया। दिलीप साहब ने ही इसी फिल्म के सेट पर उमा देवी को टुनटुन नाम दिया था।
बाद में टुनटुन ने ‘आरपार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘प्यासा’ और ‘नमक हलाल’ समेट लगभग 198 हिंदी और उर्दू फिल्मों में काम किया।
उनकी आखिरी फिल्म ‘कसम धंधे की’ की थी, जो 1990 में रिलीज हुई थी। 30 नवम्बर 2003 को लंबी बीमारी के बाद टुनटुन का निधन हो गया। मौत के वक्त उनकी उम्र 80 साल थी।