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हरियाणा के इस प्राचीन मंदिर में लगता है देशभर के साधु-संतो का तांता, चार महीनों तक एक ही जगह होगी जप, तप और साधना

अपनी अद्भुतता के लिए जाना जाने वाला प्राचीन सूर्यकुण्ड मंदिर एक बार फिर चर्चाओं में हैं। जैसा कि सब जानते है श्रावण का महीना शुरू होने वाला है और इसी के साथ चातुर्मास की भी प्रारंभ हो जायेगा। इस दौरान अमादलपुर का सूर्यकुण्ड मंदिर दूर दराज से आए साधु-संतों की नगरी बन जायेगा। 13 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो रहा है और यहां प्रयागराज, अयोध्या, हरिद्वार, वृंदावन, काशी आदि जगहों से साधु-संत पहुंचेंगे। दो व चार महीनों तक वे यही साधना करेंगे। 12 जुलाई को अखंड रामायण पाठ का संकीर्तन, गुरु पूजन, सन्यासी पूजन, समर्पण व भंडारा होगा। इसके बाद 13 जुलाई से नियम शुरू हो जाएंगे।

मंदिर के महंत गुणप्रकाश चैतन्य महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है। इसमें श्रावण, भाद्रपद (भादो), आश्विन और कार्तिक का महीना आता है। चातुर्मास के दौरान सभी साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर जप, तप और साधना करते हैं।

प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर पर की गई साधना का विशेष महत्व होता है। इसलिए यहां अधिक संख्या में साधु-संत पहुंचते हैं। शास्त्रों में भी इसका विशेष वर्णन हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यकुंड मंदिर में स्नान, जप, तप व साधना करने से अन्य तीर्थों से शतगुण अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

प्राचीनकाल से चली आ रही है परंपरा

प्राचीन काल से ही चातुर्मास में ऋषि मुनियों की एक स्थान पर रहकर पूजा-अर्चना, जाप, ध्यान व साधना करने की परंपरा चली आ रही है। चातुर्मास दो व चार महीनों का होता है। इस दौरान व्याधियों व कीटों का प्रकोप अधिक रहता है और जाने अंजाने में इन जीवों के साथ हिंसा हो जाती है। इसलिए इस समय में साधु संत एक से दूसरे स्थान पर नहीं जाते। नदी नाले को लांघना भी इस समय पाप माना जाता है। साधु संत एक समय आहार लेकर भगवान की आराधना में लग जाते हैं।

महामारी ने रोकी थी साधु-संतो की यात्रा

बता दें कि इस बार चार्तुमास में विशिष्ठ महायज्ञ, श्रीमद्भागवत कथा, पार्थीवेश्वर पूजन होगा। बीते वर्ष महामारी की वजह से बहुत कम संख्या में साधु-संत यहां पहुंचे थे। जानकारी के अनुसार पिछली बार करीब 100 साधु संत ही पहुंच पाए थे लेकिन इस बार अधिक के पहुंचने की संभावना है। इसको देखते हुए मंदिर परिसर में कार्य किया जा रहा है। ताकि साधु-संतों के बैठने व आराम करने में कोई परेशानी ना हो। क्योंकि चातुर्मास में साधु-संत बिस्तर या चारपाई पर नहीं सोते। ऐसे में उनके लिए मंदिर परिसर में ही चबूतरे का निर्माण कराया जा रहा है।

भारी संख्या में जुटते हैं श्रद्धालु

बता दें कि चातुर्मास से पहले संकीर्तन में यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और सभी अखंड रामायण पाठ में भाग लेते हैं। इसके अलावा चातुर्मास में भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं और साधु-संतों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस प्राचीन सूर्यकुण्ड मंदिर में चौबीसों घंटे श्री रामचरितमानस का अखंड पाठ चलता रहता है, हर रोज यज्ञ में आहुति दी जाती है। बता दें कि मंदिर की अपनी एक गोशाला भी है जिसमें फिलहाल 70 के करीब गाय हैं।

Rajni Thakar

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