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अद्भुत मंदिर: तीन रंगों में बदलता है हरियाणा के इस कुंड का पानी, दीवारों पर संपूर्ण श्री रामचरितमानस, सूर्यग्रहण का भी नहीं कोई असर

श्री रामचरितमानस अब तक आपने सिर्फ कागज के पन्नो पर ही पढ़ी होगी। लेकिन आज हम आपको हरियाणा में मौजूद एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिस की दीवारों पर संपूर्ण श्री रामचरितमानस लिखी (The entire Shri Ramcharitmanas is written on the walls) हुई है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं। खास बात तो यह है कि यहां पर सूर्य ग्रहण (no effect of solar eclipse) का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह मंदिर लोगों की आस्था का (Suryakund temple at village Amadalpur) केंद्र बन चुका है। भारत में ऐसे केवल दो ही मंदिर हैं, एक उड़ीसा के कोणार्क में, तो वहीं दूसरा हरियाणा के यमुनानगर में।

यमुनानगर मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद गांव अमादलपुर स्थित सूर्यकुंड मंदिर उस जगह की पहचान बन चुका है। दूर-दराज से श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने आते हैं। यह मंदिर अब आस-पास के लोगों की आस्था का केंद्र बन चुका है।

मंदिर की खासियत यह है कि यहां की दीवारों पर संपूर्ण श्री रामचरितमानस एलमुनियम की प्लेटों पर लिखी हुई है और यह पूरी तरह से हस्तलिखित है। इसको लिखने में किसी भी तरह की मशीन का प्रयोग नहीं किया गया है। खास बात तो यह है कि इसको लिखने के लिए बनाई गई स्याही भी औषधियों से तैयार की गई थी।

25 वर्षों लगातार हो रहा रामायण का पाठ

बता दें कि वर्ष 2009 में इस मंदिर का उद्घाटन किया गया था। तब से लेकर अब तक इसकी चमक बरकरार है। बीते 25 वर्षों से लगातार चल रहे रामायण के पाठ ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। न केवल हरियाणा बल्कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और दिल्ली से श्रद्धालु यहां नतमस्तक होते हैं। पुरातत्व विभाग की टीम भी यहां का दौरा कर चुकी है। खुदाई के दौरान यहां यज्ञशाला शिवलिंग और सूर्य को मिले थे।

सूर्य ग्रहण का भी नहीं पड़ता कोई असर

मंदिर के पुजारी ने बताया कि सूर्यग्रहण के समय मंदिर के प्रांगण में आने-वाले किसी भी प्राणी पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मंदिर के प्रांगण में सूर्य कुंड इस प्रकार से बना है कि सूर्य की‍ किरणें इस प्रकार पड़ती हैं कि वो कुंड मे ही समा जाती हैं। इसलिए सूर्य ग्रहण के दिन साधु-संत और श्रद्धालु दूर-दूर से यहां दर्शनों के लिए आते हैं। चौमासा में दूर दराज के संत यहां आकर रूकते हैं। क्योंकि जब तक चौमासा चलता है संत किसी भी दरिया को पार नहीं करते।

सूर्यकुंड मंदिर का इतिहास

मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी सुरेश पंडित ने बताया कि त्रेता युग में मध्य से पूर्व भगवान श्रीराम से 43 पीढ़ी पहले सूर्यवंश में राजा मांधाता सूर्यवंश राजा सोभरी ऋषि को आचार्य बनाकर यमुना नदी के किनारे राजसुय यज्ञ किया। यज्ञ में बहुत सारे देवी देवता भी शामिल हुए। यज्ञ संपन्न होने के बाद ऋषियों ने यज्ञ कुंड में जल भरवा दिया और उसे सूर्य कुंड की संज्ञा दी।

भारत में इस तरह के 68 कुंड मौजूद हैं लेकिन सूर्य कुंड के मंदिर केवल दो ही हैं एक जिला यमुनानगर के गांव अमादलपुर में और दूसरा उड़ीसा के कोणार्क में। कहा जाता है कि द्वापर के अंत में सूर्य वंश के अंतिम राजा मित्र ने अपनी कुल समृद्धि के लिए पूर्वजों द्वारा प्रतिष्ठित सूर्य कुंड पर अपने कुल देवता सूर्य नारायण को तपस्या से प्रसन्न किया था। उनकी आज्ञा से ही सूर्य नारायण जी के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

तीन रंगों में बदलता है कुंड का पानी

बता दें कि सूर्य कुंड का पुनःनिर्माण किया गया था। सूर्य की कृपा से इस कुंड का पानी गर्म और दिन में तीन रंग लाल, हरा और पीले में बदलता रहता है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से सभी तरह के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। अमावस्या संक्रांति पितृपक्ष में पिंड दान करने से पितरों को विशेष तृप्ति होती है।

कहा जाता है कि वनवास के समय पांडव भी यहां आए थे और युधिष्ठिर संवाद भी इसी कुंड पर हुआ था। इस दौरान अर्जुन भगवान शिव से पाशुपत लेने कैलाश गए और शिव को प्रसन्न कर अस्त्र प्राप्त किए। पूजा के लिए उन्होंने चिन्ह मांगा और भगवान शिव ने उन्हें स्वेरुषश्वर लिंग दिया। इसके बाद अर्जुन ने शिव मंदिर का निर्माण कराया और शिवलिंग की स्थापना की।

कहा जाता है कि एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन वन विहार करते हुए यमुना के किनारे आ पहुंचे तब उन्होंने यहां पर तपस्या में लीन एक कन्या को देखा। तब अर्जुन ने कन्या से तपस्या का कारण पूछा तो कन्या ने बताया कि वह सूर्य नारायण की पुत्री कालिंदी है और वह भगवान श्रीहरि को पति बनाने के लिए तपस्या कर रही है। इससे श्रीकृष्ण उन्हें इंद्रप्रस्थ ले आए और यह श्रीकृष्ण की आठवीं पटरानी हैं।

आक्रमणकारी ले गए भगवान की प्रतिमा

इसके इतिहास में कहा जाता है कि औरंगजेब के समय हिंदू संस्कृति का पूरी तरह विध्वंस किया गया। उन्होंने हिंदुओं के सभी धार्मिक और ऐतिहासिक स्थानों को नष्ट कर दिया। आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर भी हमला बोला और यहां से भगवान सूर्यनारायण की व अन्य प्रतिमाएं अपने साथ ले गए।

15 मार्च 1983 से श्री श्री स्वामी 1008 अखिलानंद महाराज व श्रद्धालुओं की मदद से सूरज कुंड मंदिर का निर्माण दनोतर हो रहा है। पुजारी बताते हैं कि पहला उड़ीसा स्थित कोर्णाक का सूर्य मंदिर जिसे चंद्रवंशी राजा व भगवान श्री कृष्ण व जामवंती के सुपुत्र शाम ने बनवाया था।

कैसे पहुंचे मंदिर?

अगर आप भी इस मंदिर में आकर भगवान सूर्यनारायण के दर्शन करना चाहते हैं, तो मुख्यालय से सूर्य कुंड मंदिर में पहुंचने के लिए आपको बूड़िया चौक जाना होगा। बूड़िया चौक से अमादलपुर रोड करीब 5 किलोमीटर दूर है। गांव सुघ व अमादलपुर के बीच सड़क किनारे ही मंदिर का मुख्य द्वार मौजूद है। यहां से आपको ऑटो-रिक्शा या अन्य वाहन आसानी से मिल जाएगा।

Rajni Thakar

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