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Saturday, April 20, 2024
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    ऐतिहासिक महत्व समेटे हुए है हरियाणा का यह मंदिर, मूर्ति खुदाई के बाद हुआ था दैवीय शक्तियों का चमत्कार

    देश में मौजूद हर गांव या शहर का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व होता है। कई बार तो गांव की परंपराएं ऐसी होती हैं जिनके बारे में कभी सुना भी नहीं होता। इनका इतिहास बहुत ही दिलचस्प होता है। आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बारे में बताएंगे जो अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व समेटे हुए हैं। वैसे तो देश में हजारों मंदिर हैं लेकिन इसका महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि पूरे भारतवर्ष में ऐसे केवल दो ही मंदिर है जहां भगवान बलभद्र जी की स्वयंभू मूर्ति स्थापित है। एक मंदिर है हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद गांव धौलरा में तो वहीं दूसरा जगन्नाथ पुरी में। यह मंदिर इस गांव की पहचान बन चुका है।

    भारत में 2 मंदिर होने की वजह से इसकी महत्ता भी अधिक है हर साल अक्षय तृतीया के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ जाती है। मेले व भंडारे में पहुंचे श्रद्धालु यहां अपनी इच्छाएं मांगते हैं और जब यह पूरी हो जाती है तो फिर बलभद्र जी का आभार जताने प्रसाद स्वरूप कुछ लेकर आते हैं और अन्य श्रद्धालुओं में बांटते हैं।

    मंदिर की महत्ता इतनी अधिक है कि प्रशासन भी यहां पर कुछ नहीं कर पाया है जबकि इसे एक बड़े धार्मिक व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है गांव के साथ-साथ आसपास के लोगों का भी फायदा होगा लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।

    खुदाई में निकली मूर्ति

    मंदिर के पुजारी अरूण पुरी ने बताया कि पूरे भारत में भगवान बलभद्र जी के केवल दो ही ऐतिहासिक मंदिर है। एक यहां गांव धौलरा में स्थित है तो दूसरा जगन्नाथ पुरी में। यहां पिंडी रूप में भगवान श्रीबलभद्र जी विराजमान हैं लेकिन गांव धौलरा में उनकी प्राचीन मूर्ति स्थापित है। पुजारी ने कहा की भगवान बलभद्र की यह मूर्ति करीब 300 वर्ष पहले गांव में मौजूद जोहड़ की खुदाई के समय मिली थी। तब से मूर्ति उसी रूप में यहां पर स्थापित है।

    यह है मंदिर का इतिहास

    कहा जाता है कि जिस समय यह मूर्ति मिली तो इसे एक व्यक्ति ने अपने साथ ले जाना चाहा। लेकिन दैवीय शक्तियों के कारण वह इसे गांव से बाहर नहीं ले जा सका। जिसके बाद गांव में ही इस मूर्ति की स्थापना की गई और तभी से ग्रामीण पूरे विधि-विधान व धार्मिक आस्था के साथ मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

    हर साल अक्षय तृतीया के दिन यहां विशाल मेले और कुश्ती दंगल का आयोजन होता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां माथा टेकने आते हैं। मान्यता है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत जरूर पूरी होती है।

    नहीं पड़ी सरकार और प्रशासन की नजर

    ग्रामीणों का कहना है कि गांव का धार्मिक महत्व भी काफी अधिक है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से गांव की दूरी महज 25 किलोमीटर है। हरियाणा सरकार धीरे-धीरे धार्मिक स्थलों को भी उभारने का कार्य कर रही है। लेकिन अभी तक सरकार और प्रशासन की नजर उनके गांव पर नहीं पड़ी। अगर सरकार यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए ध्यान दें तो गांव का कायाकल्प हो जाएगा। यह धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में उभर सकता है।

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