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Friday, March 29, 2024
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    मूसेवाला हत्याकांड के बाद मार्केट में बढ़ी बुलेट प्रूफ गाड़ियों की मांग, 3 महीने होती है बनकर तैयार

    हाल ही में सिद्धू मूसेवाला की गोलियों से हत्या कर दी गई। कहा जा रहा है कि जिस समय हत्या की गई तब वह बुलेट प्रूफ गाड़ी में नहीं थे। तब से हर किसी के मन में एक ही सवाल आ रहा है कि क्या अगर वह बुलेट प्रूफ गाड़ी में होते तो (Sidhu Moosewala massacre) उनकी जान बच जाती? क्या वह बुलेट प्रूफ गाड़ी उनकी जान बचा सकती थी? हत्याकांड के बाद से मार्केट में बुलेट प्रूफ गाड़ियों की (Demand for bullet proof vehicles increased in the market) मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे पहले यह जानना जरूरी है कि कैसे इन बुलेट प्रूफ गाड़ियों का निर्माण होता है? कैसे यह गाड़ी गोलियों को रोक सकती है?

    बुलेट प्रूफ बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक ने बताया कि अगर Sidhu Moosewala उस दिन बुलेट प्रूफ गाड़ी में होते तो उनकी जान बच (Bullet Proof Car can Save sidhu Moosewala) सकती थी। हत्याकांड के बाद से बुलेट गाड़ियों की डिमांड बड़ी है। वहीं उन्होंने यह भी बताया कि कौन से लोग बुलेट प्रूफ गाड़ी बनवा सकते हैं।

     बुलेट प्रूफ गाड़ियां बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक ने न्यूज 18 की टीम से बातचीत में बताया कि अगर सिद्धू मूसेवाला बुलेट प्रूफ गाड़ी में होते तो उनकी जान बच सकती थी. मगर उनकी गाड़ी उस स्टेंडर्ड की होती तो. उन्होंने बताया कि सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद बुलेट प्रूफ गाड़ियों की डिमांड बढ़ी है. वहीं उन्होंने बताया कि कौन से लोग बुलेट प्रूफ गाड़ी बनवा सकते हैं.

    फैक्ट्री मालिक ने बताया कि अगर कोई बुलेट प्रूफ गाड़ी बनवाना चाहता है तो सबसे पहले उसको पुलिस से एनओसी लेनी पड़ेगी। उसके बाद ही जेसीबीएल (फैक्ट्री) उनकी गाड़ी बनाएगी। वहीं उन्होंने यह भी बताया कि एक बुलेट प्रूफ गाड़ी को बनाने के तीन स्टेज होते हैं और छोटी गाड़ी बुलेट प्रुफ नहीं हो सकती है।

     उन्होंने बताया कि अगर आपको बुलेट प्रूफ गाड़ी बनानी है तो आपको सबसे पहले पुलिस से एनओसी लेनी पड़ेगी. पुलिस से एनओसी लेने के बाद ही जेसीबीएल (फैक्ट्री) उनकी गाड़ी बनाएगी. वहीं उन्होंने बताया की बुलेट प्रूफ गाड़ी तीन स्टेजेज में तैयार होती हैं. वहीं उन्होंने बताया कि छोटी गाड़ियां बुलेट प्रूफ नहीं हो सकती है.

    बुलेट प्रूफ गाड़ियों के वजन की बात करें तो इसका वजन करीब 1 क्विंटल तक बढ़ जाता है। सबसे पहले गाड़ी का पीडीआई होता है। उसके बाद गाड़ी को पूरी तरह डिस्मेंटल कर दिया जाता है। तीसरे स्टेज में गाड़ी का फेब्रिकेशन होता है। उसके बाद ही गाड़ी को हैंडओवर किया जाता है।

     बुलेट प्रूफ गाड़ियों का वजन एक क्विंटल तक बढ़ जाता है. सबसे पहले गाड़ी का पीडीआई होता है. उसके बाद गाड़ी को पूरी तरस से डिस्मेंटल कर देते हैं. तीसरे स्टेज में गाड़ी का फेब्रिकेशन होता है और उसके बाद गाड़ी को हैंडओवर किया जाता है.

    उन्होंने बताया कि एक गाड़ी को तैयार करने में 1 से 3 महीने का समय लगता है। वहीं एक बुलेट प्रूफ गाड़ी (Bullet Proof vehicle) को बनाने में कम से कम 20 लाख रुपए लगते हैं और इसकी रेंज एक से डेढ़ करोड़ तक जाती है। एक गाड़ी 1 से 3 महीने में बनकर तैयार हो जाती है।

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