उप्र चुनाव में विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंकड़ों पर नजर डाली आये तो मुस्लिम बाहुल्य ७१ सीटों में से ६७ सीटों पर भाजपा हारी है। उन ६७ सीटों की बात भी ना की जाये और सिर्फ मुजफ्फरनगर व शामली की सीटों पर नजर दौड़ाई जाये, तो स्वयं गृहमंत्री के जमीन पर उतरकर प्रचार करने के बावजूद भी मुस्लिमों के भाजपा हराओ अभियान के अन्तर्गत जेल में जाने के बावजूद भी कैराना के मुस्लिमों ने नाहिद हसन को जिता दिया।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही अन्य सीटों पर जहां-जहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र थे, वहां-वहां भाजपा पूरी तरह हारी है। थानाभवन की बात करें तो यहां प्रदेश में स्वयं गन्नामंत्री रहे सुरेश राणा को अशरफ अली खान ने जोरदार पटखनी दी है। शुरू से लेकर अंतिम चक्र तक एक बार भी सुरेश राणा अशरफ अली से आगे नहीं निकल हो पाये।

वहीं मुजफ्फरनगर से ही सटे मेरठ में रफीक अंसारी एवं मौहम्मद आदिल ने गठबन्धन से चुनाव लड़कर जीत हासिल की है। सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, नजीबाबाद आदि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी मुस्लिम प्रत्याशियों ने जोरदार जीत दर्ज करायी है।

हर बार की तरह मुस्लिम मतदाताओं ने भी इस बार भी यह साबित कर दिया कि भाजपा चाहे त जितना भी सुशासन ला दे, जितना भी राशन बांट दे, जितने भी मकान की खड़े करा दे, मगर चुनाव के समय पर मुस्लिम मतदाता खुलकर भाजपा का विरोध करेगा और विरोध ही नहीं मतदान के रूप में भी उस पार्टी को मतदान करेगा, जिस पार्टी को भाजपा हरा रही हो।

पिछले दस वर्षों में यही देखने को मिला है कि मुस्लिम मतदाता विधानसभा या लोक यदि बसपा का प्रत्याशी मजबूत हो और भाजपा के प्रत्याशी को हराने का दम रखता हो तो वहां मुस्लिम मतदाता बसपा को वोट था।

जहां-जहां सपा का प्रत्याशी मजबूत हो वहां मुस्लिम मतदाता सपा को वोट देता रहा था। मगर इस बार उत्तर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही थी। शुरू में ही मायावती के सुस्ती से चुनाव लड़ने के कारण मुस्लिम मतदाता सपा को पूरी तरह चुनाव जिताने व भाजपा को करारी हार दिलाने के लिए तैयारी कर चुका था।

मतदान के दिन तक भी अंधेरे में जी रहे भाजपाइयों को ऐसा लग रहा था कि इस बार सुशासन, विकास और राशन के दम पर शायद पहले से बड़ी मात्रा में मुस्लिम मतदाता उन्हें वोट करेगा, मगर चुनावी नतीजे आने के बाद यह साफ हो गया कि मुस्लिम मतदाता इस बार भी भाजपा के खिलाफ पुरजोर से खड़ा रहा।

पूरे पश्चिमी उप्र में ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं ने कहीं भी भाजपा को जोरदार समर्थन नहीं किया। आने वाले चुनाव में सत्ताधारी भाजपा इस बार क्या सबक ले पाती है, यह तो कह पाना मुश्किल है मगर इस चुनाव ने यह तय कर दिया कि भाजपा जितना मर्जी ने निष्पक्ष होकर कार्य कर ले, मुस्लिम मतदाता उसे कतई वोट नहीं करेगा।