हम भारतीय तरबूज को बड़े ही आनंद के साथ खाते हैं। इसका स्वाद लेने के लिए गर्मी का इंतज़ार करते हैं। दुनिया में फलों का भी अपना इतिहास रहा है। वे सबसे पहले कहां उगाए गए। सबसे ज्यादा कहां उगाए, कहां कहां और कैसे फैले। इनमें तरबूज की कहानी जरा रोचक है क्योंकि हाल ही में हुए एक शोध ने तरबूज की वास्तविक उत्पत्ति के बारे में दशकों पुरानी धारणा को तोड़ा है।
यह फल हमें बिमारियों से बचाता है। मन को तरो – ताज़ा कर देता है। नए शोध के मुताबिक तरबूज दक्षिणी अफ्रिका में नहीं बल्कि सबसे पहले मिस्र में उगाए गए थे। प्रोसिडिगंस ऑप द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित इस नए अध्ययन में घरेलू तरबूज के उत्पत्ति की कहानी फिर से लिखी गई है।

हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई होगा जो तरबूज को पसंद नहीं करता होगा। तरबूज खाना सभी को काफी पसंद है। वैज्ञानिकों ने सभी और सैकड़ों प्रजातियों वाले तरबूज जो ग्रीनहाउस पौधों से पैदा किए थे, के डीएनए का अध्ययन किया और पाया कि तरबूज उत्तरपूर्वी अफ्रिका के जगंली फसल से आए थे। इस अध्ययन ने 90 साल पुरानी गलती को सुधारा है। तब से कहा जा रहा है कि रसीले तरबूज दक्षिणी अफ्रीकी सिट्रॉन मेलन की श्रेणी में ही आया करते हैं।

तरबूज का जूस गर्मी में अमृत सामान माना जाता है। इसको पीकर ताजगी का एहसास होता है। लेकिन इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और सेंट लुईस में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी ने पाया कि सूडान का मीटा सफेद तरबूज जिसे कोरडोफैन तरबूज कहते हैं वह खेती कर उगाया जाना वाला सबसे नजदीकी तरबूज है। इस जेनेटिक शोध के नतीजे हाल ही में पाई गई मिस्र की एक पेंटिंग से मेल खाते है जिसमें दिख रहा है कि तरबूज 4 हजार साल पहले के समय से नील नदी के रेगिस्तान में खाए जाते थे।

ऐसा माना जाता है कि यह लोगों की प्यास भी भुजाता है। पानी का काम तो नहीं करता यह लेकिन अपने में यह एक चमत्कारी फल है।