समाज के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग आज दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत के किसी भी वर्ग के परिवार में आपको इसका नज़ारा मिल ही जाएगा। खासतौर पर समृद्ध परिवारों में दहेज लेने की अधिक होड़ लगी रहती है।
सरकारें कानून बनाकर सो गईं मगर आज देखने वाला कोई नहीं है कि मौजूदा वक्त में ज़मीनी स्तर पर क्या हालात हैं। सरकार जितना कुछ कर रही है, वह सब सिर्फ ऊंट के मुंह में जीरा जितना है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इन चीज़ों से दहेज प्रथा जैसी बिमारी को खत्म नहीं किया जा सकता है। अब इसका प्रभाव गाँवों, शहरों और महानगरों में भी दिखने लगा है।
लोग यह समझना ही नहीं चाह रहे हैं कि दहेज लेना और देना दोनों ही गुनाह है। भारतीय दंड संहिता भी अपराधी का सहयोग करने वाले को अपराधी मानती है।

बतादें, पलवल जिले के गांव मढनाका में एक बारात आई थी। दुल्हन वालों ने अच्छे से बारात का स्वागत किया था। हालांकि इस दौरान ही दूल्हे पक्ष ने कुछ ऐसा कर दिया कि लड़की वालों ने शादी को तोड़ दिया।
इतना ही नहीं बारात में आए लोगों को बंधी बना लिया और कई घंटों बाद उन्हें छोड़ा। बतादें दूल्हे के पिता ने कहा कि शादी तभी होगी जब कार दी जाएगी। कार नहीं देने पर फेरे नहीं होंगे। कार की डिमांड को सुन दुल्हन के परिजन हैरान रहे गए।

हालांकि उन्होंने गाड़ी देने के लिए हां कर दी। जिसके बाद अगले दिन ही गांव में बारात आ गई। जैसे ही शादी की रस्में शुरू हुई तो दूल्हे के पिता ने कार की मांग कर दी।
ये बात गांव वालों को पता चली तो उन्होंने दूल्हे और उसके पिता को खड़ा कर जूते मारे और बारात को बंधक बना लिया। साथ ही दुल्हन ने शादी करने से भी मना कर दिया। गांव वालों ने बारात को छोड़ने के लिए एक शर्त भी रखी।

दूल्हे व उसके परिवार वालों से कहा गया कि जब तक शादी में खर्च हुए पैसे दुल्हन के घरवालों को नहीं दिए जाएंगे। तब तक बारात को नहीं जाने दिया जाएगा। और हुआ भी ऐसा ही, कुल मिलाकर दहेजलोभी आज की तारीख़ में किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
अगर हमने इस दहेज रूपी दानव को जड़ से उखाड़ फेंकना है तो इसके लिए हम सबको एक साथ एक जुट होना होगा और संविधान के साथ इसपर कानून को भी सख़्ती से अमल कराना होगा तभी कुछ बेहतर होना मुमकिन नज़र आ सकता है।