दुनिया के जिस भी देश का जासूसी तंत्र मजबूत होता है वह देश काफी सक्षम होता है और सुरक्षित होता है। जासूसों की दुनिया ही बिल्कुल अलग होती है। ये लोग दूसरे देशों में जाकर वहां की खुफिया जानकारी अपने देश की खुफिया एजेंसी को भेजते हैं, लेकिन यह काम कहने-सुनने में जितना आसान लगता है, असल जिंदगी में यह उतना ही मुश्किल काम है।
अपनी जान की परवाह किये बिना यह लोग देश के लिए प्राण त्यागने को भी तैयार रहते हैं। इसमें जान का खतरा हमेशा बना रहता है। अगर जासूसी करते दूसरे देश में पकड़े गए तो वहां के कानून के हिसाब से उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है।

हर देश अपने यहां मजबूत जासूसी तंत्र चाहता है। दुनिया का एक बहुत ही छोटा देश लेकिन सैन्य ताकत में सबसे ताकतवर देशों में एक इजराइल का जासूसी तंत्र काफी मजबूत है। इजराइल के पास हर जंग को जीतने के लिए एक सबसे बड़ा हथियार है उसकी खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ हम जिस जासूस की बात कर रहे हैं वो हैं एली कोहेन, जो इस्राइल की खुफिया एजेंसी के जासूस थे। उन्हें इस्राइल का सबसे बहादुर और साहसी जासूस भी कहा जाता है। उन्होंने वो कर दिखाया था, जो शायद उनके अपने देश इस्राइल ने भी नहीं सोचा था।

अपने देश के लिए उन्होंने सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उनके जैसा जासूस आज तक कोई नहीं हो सका है। कहते हैं कि कोहेन ने ऐसी खुफिया जानकारी जुटाई थी, जिसकी वजह से ही साल 1967 के अरब-इस्राइल युद्ध में इस्राइल को जीत मिली थी। एली कोहेन ने 1961 से 1965 के बीच एक इस्राइली जासूस के तौर पर चार साल अपने दुश्मनों के बीच सीरिया में गुजारे। एक कारोबारी के तौर पर उन्होंने सीरिया में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली थी और इसकी आड़ में वो सीरिया की सत्ता के बेहद करीब पहुंच गए थे।

अपने शातिर दिमाग के खातिर उस देश के एली बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए थे। उन्होंने वहां हुए तख्तापलट में भी अहम भूमिका निभाई और सीरिया के राष्ट्रपति के करीबी बन गए। कहते हैं कि राष्ट्रपति भी उनसे रक्षा जैसे मामलों में सलाह लिया करते थे। अरबी, अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषा पर कोहेन की पकड़ बेहद ही मजबूत थी और इसी वजह से वो इस्राइली खुफिया विभाग की नजर में आए।