भारत दुनिया का सबसे प्राचीन देश है। प्रकृति ने भारत को बहुत कुछ दिया है। भारत को अगर ‘किलों का देश’ कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि प्राचीन काल में राजाओं ने यहां इतने किले बनवाए हैं कि आप गिनते-गिनते थक जाएंगे। भारत में शायद ही ऐसा कोई राज्य होगा, जहां कोई ऐतिहासिक किला ना मौजूद हो। आज हम आपको एक ऐसे किले में बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे ‘भारत का सबसे विशाल किला’ कहा जाता है।
आपने इस किले को हो सकता है हकीकत में देखा होगा। फिल्मों में तो कई बार इसे देखा होगा। कई फिल्मों में इस किले को दिखाया गया है। इसके निर्माण की कहानी भी महाभारत काल से जुड़ी हुई है, जिसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे।

भारत से ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने – कोने से लोग इसे देखने आते हैं। यह भारत के इतिहास का प्रतीक है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं चित्तौड़गढ़ दुर्ग की, जिसे भारत का सबसे विशाल दुर्ग कहा जाता है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। इसे राजस्थान का गौरव और राजस्थान के सभी दुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं। करीब 700 एकड़ में फैले चित्तौड़ के दुर्ग को साल 2013 में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। इस किले पर अलग-अलग समय में कई राजाओं का शासन रहा है।

यह किला एक भव्य और शानदार संरचना है। जो भी इसे देखता है वह इसका दीवाना हो जाता है। करीब 180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस किले में कई एतिहासिक स्तंभ, स्मारक और मंदिर बने हुए हैं। विजय स्तंभ के अलावा यहां 75 फीट ऊंचा एक जैन कीर्ति स्तंभ भी है, जिसे 14वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसके पास ही महावीर स्वामी का मंदिर है। उससे थोड़ा आगे नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।
जितना प्राचीन इतिहास भारत का है शायद ही किसी और जगह को आपको मिलेगा। इस किले के पहले द्वार के बारे में कहा जाता है कि एक बार एक भीषण युद्ध में खून की नदी बहने लगी थी, जिसमें एक भैंसा बहता हुआ यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार का नाम पाडन पोल पड़ा। यहां मौजूद हर दरवाजे की एक अलग कहानी है। यहां बहुत से दरवाजे हैं।

एक इतिहासिक जगह की बहुत सी कहानियां सुनने को मिलती हैं। आपने भी कई कहानियां एक जगह की सुनी होगी। ऐसे ही इस किले का निर्माण किसने करवाया था और कब, इसके बारे में सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसे मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में बनवाया था। एक कहानी यह भी है कि इसे महाभारत काल में बनवाया गया था।