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Tuesday, March 19, 2024
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    महिला ने इंसानियत को दिया नया मुकाम, जॉब छोड़ संक्रमित शवों का कर रही अंतिम संस्कार

    कोरोना महामारी की जंग से सभी हो रहे दो-चार। कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए पहले ICU बेड्स, ऑक्सीजन सिलेंडर और जरूरी दवाओं के लिए भागदौड़ और दुर्भाग्य से किसी मरीज की कोविड-19 से मौत हो जाती है तो फिर उसके अंतिम संस्कार के लिए लंबी वेटिंग।

    अगर ज़िक्र झारखंड की राजधानी रांची की करें तो यहां कोविड-19 मौतों के लिए एकमात्र मुक्तिधाम श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए लंबी वेटिंग को देखते हुए लोगों का सब्र जवाब दे गया।

    बतादें घाघरा नामकुम रोड को जाम कर दिया। दरअसल,रांची में हर रोज़ कोरोना से औसतन लगभग 50 मौत हो रही है। कोविड-19 मृतकों के लिए रांची में घाघरा नदी के तट पर सिर्फ एक श्मशान घाट है।

    एक अंतिम संस्कार पूरा होने में कम से कम साढ़े तीन घंटे का समय लगता है। ऐसे में अंतिम संस्कार के इंतजार में लंबी कतार लग जाती है। सोमवार को स्थिति और खराब हो गई जब चिताएं जलाने के लिए श्मशान घाट पर लकड़ी की ही कमी हो गई।

    अब ऐसे समय में कोई करे भी तो क्या करे, खैर अब आपको एक उदाहरण हम देने जा रहे हैं, एक ऐसी महिला का जो अपने आप में ही एक बहुत बड़ी ताकत है, मिसाल है।

    बतादें आपको जहाँ, अपने दे रहे हैं तिलांजलि तो अंतिम यात्रा में कंधा दे रही हैं मधुस्मिता नाम की ये महिला। वह कहती हैं कि उन्होंने भुवनेश्वर नगर निगम के साथ कोविड के शव को कोविड अस्पताल से लेने और भुवनेश्वर के श्मशान में शव का अंतिम संस्कार करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

    कोरोना संकटकाल में लाखों की संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना संक्रमण के खौफ के कारण लोग अपने ही कोरोना संक्रमित रिश्तेदारों का अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भुवनेश्वर मधुस्मिता, जो दूसरों के लिए मोक्षदायनी बन रही हैं।

    कोलकाता में एक अच्छी तनख्वाह की नौकरी करने वाली नर्स मधुस्मिता प्रुस्टी ने अपने नौकरी तक छोड़ दी है और वह भुवनेश्वर में कोविड और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने में अपने पति की मदद कर रही हैं।

    मधुस्मिता प्रुस्टी ने बताया कि, वह कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल के बाल रोग विभाग में नर्स के रूप में काम कर रही थी। उन्होंने कोलकाता में 2011-19 तक नौ साल तक मरीजों की सेवा की। लेकिन इसके बाद उन्होंने ओडिशा लौटने और अपने पति की मदद करने का फैसला किया क्योंकि पैर में चोट लगने के कारण दाह संस्कार का काम नहीं कर सके।

    असल में उनके पति पहले से ही लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। मुधस्मिता का कहना है कि 2019 में ओडिशा वापस आने के बा उन्होंने रेलवे ट्रैक, आत्महत्या के मामलों और अस्पतालों में मिले परित्यक्त शवों का अंतिम संस्कार करने में अपने पति की मदद करना शुरू किया।

    मुधस्मिता अभी तक करीब 500 के आसपास शवों का अंतिम संस्कार करा चुकी हैं, जिसके लिए उन्हें ख़ूब सराहा जा रहा है। वो कहती है कि इससे ही उनका हौसला और बढ़ रहा है, इसीलिए वो पूरी ताकत के साथ, पूरे मन से इसी काम में लगी हैं और यूंही लगी रहेंगी।

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