अक्सर लोगों को उनकी परेशानी सबसे बड़ी लगती है। ऐसे बहुत से लोग है जिन्होंने अपने दम पर कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ा है। आज आपको एक ऐसी लड़की की कहानी सुनाने जा रहे है जिसने अपनी परवरिश खुद की और खुद अपना मुकाम बनाया। एक ऐसी लड़की की कहानी जिसकी परेशानी सुन आपको भी अपनी परेशानी कम लगेगी। उम्मुल खैर जिसने अपनी जुनून और लगन से हर मुश्किल को पार करते हुए आईएएस बन गयी।
उम्मुल एक गरीब परिवार में पैदा हुई और उसकी जिंदगी दिल्ली की निजामुद्दीन की झुग्गीयो में पली जहाँ उसके माँ बाप रहते थे। गरीबी के कारण तो पढाई मुश्किल थी लेकिन उसके ऊपर उसे एक विशेष प्रकार की बीमारी थी जिससे हड्डिया कमजोर हो जाती हैं और छोटी से गलती में ही हड्डियों के टूटने का खतरा बना रहता है।

अभी तक कमसे कम १६ बार फ्रैक्चर हुआ।ऐसी स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाज नहीं लगाया जा सकता। जब वह पांचवी में पढ़ती थी तो उसकी माँ की मौत हो गयी और पापा ने कुछ समय बाद दूसरा विवाह कर लिया। दूसरी मां आने के बाद उम्मुल को लगा कि उसे मां जैसा ही प्यार मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उसने उम्मुल की पढ़ाई बंद करवा दी।
उम्मुल के मना करने पर दूसरी मां उसके सामने शर्त रख दी कि वो जो कहेगी उसे करना पड़ेगा। जिसके बाद उम्मुल ने घर छोड़ने का फैसला किया और रूम लेकर अलग रहने लगी। उम्मुल अपना खर्च बच्चों को पढ़ा कर निकाल लेती थी।

उम्मुल एक दिन में आठ-आठ घंटे बच्चों को पढ़ाती थीं। समस्याएं यहीं तक नहीं थीं, अपनों की बेरुखी के साथ साथ उम्मुल बचपन से ही एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही थीं। दरअसल इन्हें बोन फ्रेजाइल नामक बीमारी थी, इस बीमारी में शरीर की हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि इन्हें टूटने में ज़रा समय नहीं लगता। इतना सब कुछ होने के बाद भी उम्मुल हार नहीं मानी और पढ़ाई करती रही।

अपनी मेहनत और लगन से आगे की पढ़ाई के लिए उम्मुल ने स्कॉलरशिप्स हासिल कर ली थी। इन्होंने 91% नंबरों से दसवीं तथा 90% से बारहवीं की परीक्षाएं पास की थीं। आगे की पढ़ाई उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी विषय में पूरी की।

इतनी मेहनत के बाद उम्मुल के मन में यूपीएससी क्लियर करने का जुनून सवार हो चुका था। जेआरएफ के साथ ही उन्होंने आईएएस की तैयारी शुरू कर दी थी।
जैसा कि हम सब जानते हैं यूपीएससी की परीक्षा बेहद कठिन होती है लेकिन उम्मुल की मेहनत यूपीएससी कि परीक्षा में भी रंग लाई और उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में ऑल इंडिया 420वां रैंक प्राप्त कर लिया और बन गईं आईएएस।