यरूशलम का मुद्दा इजरायल और फलस्तीनी अरबों के बीच के पुराने विवाद में एक अहम मुद्दा रहा है। बीबीसी की एरिका चेर्नोफ्स्काई ने इस मुद्दो को विस्तार से समझने की कोशिश की और जानना चाहा कि आखिर क्यों ईसाई, इस्लाम और यहूदी, तीनों धर्मों के लिए ये शहर इतना महत्वपूर्ण है। तीनों ही धर्म अपनी शुरुआत की कहानी को बाइबल के अब्राहम से जोड़ते हैं।
ईसाईयों के लिए यह जगह इसलिए काफी अहम है क्योंकि उनका मानना है कि यहां जीसस का का निधन हुआ था और वहीं उनका फिर से जन्म हुआ था। वह किंग डेविड को जीसस का पुनर्जन्म मानते हैं।

किंग डेविड ने ही येरूशलम में राजतंत्र की स्थापना की थी। हिब्रू बाईबिल के अनुसार किंग डेविड के वंशज भी मसीहा हैं। इसी वजह से येरूशलम ईसाईयों के लिए एक पवित्र स्थान है। लाखों ईसाई यहां आते हैं जीसस के मकबरे पर अपनी प्रार्थना करते हैं।

इजरायल की ज्यादातर सरकारी एजेंसियां और पार्लियामेंट तेलअवीव के बजाय येरूशलम में ही हैं, जबकि अमेरिका और अन्य देशों के दूतावास तेल अवीव में हैं। तेल अवीव में 86 देशों के दूतावास हैं।

एक तरफ जहां इजरायल अपनी राजधानी यरुशलम को बताता है, वहीं दूसरी तरफ फिलिस्तीनी भी इस पर अपना दावा करता है। संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया के कई देश पूरे यरुशलम पर इजरायल के दावे को मान्यता नहीं देते।

साल 1948 में इजरायल ने आजादी की घोषणा की थी और एक साल बाद यरुशलम का बंटवारा हुआ था। बाद में 1967 में इजरायल ने 6 दिनों तक चले युद्ध के बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया था।

1967 में इजरायल ने सीरिया, जॉर्डन और फिलिस्तीनियों के बीच युद्ध हुआ। इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया।पहले ये दोनों इलाके जॉर्डन के पास थे।

तभी से इन इलाकों में इजरायल और फलस्तीनियों के बीच हिंसक टकराव होता रहता है। इजरायल का कहना है कि पूरा यरुशलम उसकी राजधानी है, जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीन राष्ट्र की राजधानी मानता है।