शादियों के सीजन शुरू हो चुका है। ऐसे में जुलाई तक बहुत सारे महूर्त है। भारत में शादी एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक रिवाज़ है और कानूनी रूप से भी इसको बहुत महत्वता मिली हुई है। भारत में ऐसे बहुत से अधिनियम और धाराएं हैं जिसके अंतर्गत शादी संपन्न की जा सकती है। भारत में धर्म की अद्वितीय महत्वता है इसलिए बहुत से धर्मों के शादी के लिए अपने पर्सनल कानून हैं।
हिन्दू विवाह अधिनियम-
1950 में बना यह कानून मुस्लमान, परसी, यहूदी और अनुसूचित जाति के लोगों के अतिरिक्त सभी भारतीयों पर लागू होता है। यह अधिनियम शास्त्रीय विधि और आधुनिक कानून का समावेश है। इसी अधिनियम के अंतर्गत हिन्दू विवाह और तलाक को कानूनी मंज़ूरी दी जाती है। इस अधिनियम के अंतर्गत अगर कोई भी महिला और पुरुष कुछ पुश्तों से सम्बंधित नहीं हो तो शादी कर सकते हैं। हालाँकि अगर किसी समुदाय में सम्बन्धियों से शादी करना आ रहा है तो उसकी छूट है।

विशेष विवाह अधिनियम-
विशेष विवाह अधिनियम भारत में अंतरधार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह को पंजीकृत करने एवं मान्यता प्रदान करने हेतु बनाया गया है। यह एक नागरिक अनुबंध के माध्यम से दो व्यक्तियों को अपनी शादी विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है। अधिनियम के तहत किसी धार्मिक औपचारिकता के निर्वहन की आवश्यकता नहीं है।

मुसलमानों से शादी के नियम- इस्लाम धर्म में शादी एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट यानी अनुबंध है जिसके लिए किसी धार्मिक संस्कार की आवश्यकता नहीं होती। इस अनुबंध में सहमति बहुत ज़रूरी है और यह मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम, 1937 के आधार पर चलती है। इसके अनुसार दूल्हे को शादी पर दुल्हन को दहेज़ भी देना पड़ता है। परन्तु इस नियम में कुरान के अनुसार मर्द को पहली बीवी के सहमति के बिना भी अन्य 4 बीवियाँ रखने की छूट है। हालाँकि सभी बीवियों का बराबर पालन पोषण करना अनिवार्य है।
