अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जया बच्चन और जया भादुरी 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई कल्ट फिल्म ‘शोले’ तीन करोड़ के बजट में बनी थी। उस साल शोले ने 15 करोड़ कमाए। वर्ल्ड वाइड कमाई तो इससे लगभग तीन गुना अधिक थी। यह फिल्म इतनी फास्ट चलती है कि फिल्म में हुई कुछ गलतियों की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता है।

जी हां आज हम उन गलतियों पर से पर्दा उठाएंगे। दरअसल आप जानते हैं कि ठाकुर के हाथ गब्बर काट चुका है। लेकिन क्लाईमेक्स में जब ठाकुर गब्बर को मारता है तो उसके सफेद कुरते से उसके हाथ साफ दिखाई दे रहे हैं।

लगता है क्लाईमेक्स के चक्कर में फिल्म निर्देशक इस खामी पर ध्यान देना भूल गए। जब ठाकुर की विधवा बहू राधा रात को लालटेन की रोशनी बुझाती है।गांव में बिजली नहीं थी लेकिन गांव में पानी की टंकी थी और बिजली के खंबे भी।
दरअसल कर्नाटक में पहाड़ी इलाके में जब रामगढ़ गांव का सेट लगा, तब इस तरह की कुछ और गलतियां भी हुईं। फिल्म में कुछ जगह कन्नड़ में लिखे बोर्ड्स भी नजर आते हैं।

फिल्म शोले का वह सीन तो याद ही होगा जब बसंती शिव मंदिर में पैदल ही पूजा करने के लिए आई थी। इस फिल्म में यह दिखाया गया था कि बसंती पैदल ही मंदिर जाती है, इतना ही नहीं बल्कि वीरू बसंती से यह पूछता है कि आज तुम्हारी धन्नो कहां है?

लेकिन आप लोगों ने शायद ही गौर किया होगा कि जब बसंती मंदिर से वापस लौटती है तो उसका तांगा बाहर इंतजार कर रहा होता है।
असरानी ने जेलर की भूमिका निभाई थी, जो अक्सर कहते थे, हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं।

इस फिल्म के एक सीन में नाई बने केश्टो मुखर्जी उनके पास जय और वीरू के जेल से भागने का प्लान बताने जाता हैं। उस समय घड़ी में तीन बज रहे होते हैं। इसके बाद जब जय और वीरू जेलर से मिलने जाते हैं, तब भी घड़ी की सूई तीन पर ही अटकी रहती है।