भारतीय स्त्री की गुलामी की जंजीरें सदियों से पुरुष, पूंजी और धर्म के हाथों में रही हैं। यह भी कहा जा सकता है कि मानव समाज में ताकत के जितने रूप और संस्थान हैं, वे सब या तो स्त्री का शोषण करते हैं या अपने स्वार्थ के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं। जिस्मफरोशी भी स्त्री-शोषण का ही एक रूप है।

अपने देश में जिस्मफरोशी को वैध करने सवाल पर बहस पहले से होती रही है, इसके बावजूद भी मामले रुकने का नाम नहीं ले रहा।
प्राचीन काल से ज्ञात वेश्यावृत्ति का मतलब है कि आप किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाने के बाद उसका भुगतान पैसों से करें. यह धरती का सबसे पुराना व्यवसाय है।

वेश्यावृत्ति जिसकी उपस्थिति प्राचीन युग से है समाज में मान्य और अमान्य दोनों के तराजू पर बराबर है।यह एक तरह का व्यापार है जिसमें देह और इज्जत दोनों की नीलामी होती है।
वेश्यावृति में न सिर्फ महिला के देह का सौदा होता है बल्कि उसकी मर्यादा को भी बेच दिया जाता है। हालांकि वेश्यावृति की कई वजहें हैं लेकिन जिस वजह से यह सबसे ज्यादा फैला है वह है गरीबी।
गरीबी इंसान को कुछ भी करा सकती है फिर जब गरीबी और पेट के लिए हम किसी का कत्ल कर सकते हैं तो फिर औरतों के पास वेश्यावृत्ति के रुप में यह एक ऐसा साधन है

जिससे वह अपनी आजीविका कमा सकती हैं। आपको बता दे कि 1956 में पीटा कानून के तहत वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता दी गई, पर 1986 में इसमें संशोधन करके कई शर्तें जोड़ी गईं।
जिसमें सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना गया और यहां तक कि इसमें सजा का प्रावधान भी रखा गया, लेकिन इसे विडंबना कहें कि दुर्भाग्य, आज भी देश में कई ऐसे इलाके हैं, जहां लड़कियां जिस्मफरोशी को मजबूर हैं। भारत में 30 लाख से ज़्यादा महिलाएं देह व्यापार में लिप्त हैं।

जिसमें लगभग 36 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो 18 साल की उम्र के पहले ही इस व्यापार में शामिल हो गईं। रोजाना लगभग 2000 लाख रुपये का देह व्यापार होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है।